Indus valley civilization in Hindi notes: सिंधू घाटी सभ्यता प्राचीन भारतीय इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण अध्याय है जिसका अध्ययन किसी भी प्रतियोगिता परीक्षा में अहम भूमिका है।
इस पोस्ट में सिंधू घाटी सभ्यता के सभी पहलुओं को विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं को ध्यान में रखकर एक महत्त्वपूर्ण लेख तैयार किया गया है जो सिंधु सभ्यता से संबंधित सभी प्रमुख बिंदुओं को अवगत कराते हैं।
भारत की प्रथम नगरीय सभ्यता सिंधु घाटी सभ्यता (India’s first urban civilization Indus Valley Civilization In Hindi)
बीसवीं सदी के प्रारंभ तक वैदिक सभ्यता भारत का सबसे प्राचीन सभ्यता मानी जाती थी लेकिन 1921 में रेल परिवहन के विकास के क्रम में एक अंग्रेज अधिकारी जॉन मार्शल के नेतृत्व में रायबहादुर दयाराम साहनी द्वारा रावी नदी के तट पर बसा हड़प्पा नगर की खुदाई कर एक नई सभ्यता को गर्भ से बाहर निकाल कर उसे लोगों को रूबरू कराया, जिसे सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता के नाम से जानते हैं इस सभ्यता के खोज से यह साबित हुआ कि भारत की प्रथम एवं सबसे प्राचीन वैदिक सभ्यता नहीं बल्कि सिंधु घाटी सभ्यता थी।
सिंधु घाटी सभ्यता का समय काल Indus valley civilization time period
सिंधु सभ्यता भारत की प्राचीन एवं नगरीय सभ्यता थी जिसका विकास भारत के उत्तर एवं पश्चिम भाग में सिंधु नदी घाटी क्षेत्र में लगभग 4500 वर्ष पूर्व हुआ था जो विश्व की प्राचीन एवं विकसित कांस्य युगीन सभ्यताओं में से एक थी। चुकी इस इस सभ्यता का लिपि भाव चित्रात्मक थी जो दाईं से बाएं तथा पुनः बायें से दाईं की तरफ लिखी जाती थी जिसे संभवत अभी तक पढ़ा नहीं जा सकता है लेकिन रेडियो कार्बन (C14) पद्धति के विश्लेषण के आधार पर इस सभ्यता की समय काल 2300 से 1750 ई. पु माना गया है। इस आधार पर भारतीय इतिहास का प्रारंभ सिंधु घाटी सभ्यता (Indus valley civilization in Hindi) से मना गया है
सिंधु घाटी सभ्यता विस्तार क्षेत्र
सिंधु सभ्यता का भौगोलिक विस्तार मुख्य रूप से उत्तर एवं पश्चिम भारत में था। 12,99,600 वर्ग कि. मी. के क्षेत्रफल में फैले इस सभ्यता का विस्तार उत्तर में जम्मू कश्मीर में स्थित बांदा (जिला अखनूर) से दक्षिण में महाराष्ट्र में स्थित दईमाबाद (जिला अहमदनगर) लगभग तथा पूर्व में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में स्थित आलमगीरपुर से पश्चिम में पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित सुतकांगेडोर तक था।
Indus Valley Civilization Map
सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं एवं नगर नियोजन
सिंधु सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी जिसका विकास नगरों की भांति की गई थी। नगरों एवं मकानोंका विन्यास ग्रीड पद्धति में की गई थी जिसमे पक्की ईट (टेराकोटा) तथा कच्ची ईंटों से निर्मित थी। दक्षिणवर्ती क्षेत्रों में तराशे हुए पत्थर से बने मकानों के साक्ष्य मिले हैं। इस सभ्यता की मकानों की एक मुख्य विशेषता यह थी कि इनके दरवाजे एवं खिड़कियां मुख्य सड़क की ओर न खुल कर पीछे की ओर खुलती थी। लोथल जो इस सभ्यता का एक पतन नगर था जिसका मुख्य द्वार सड़कों की ओर खुलती थी।
चौड़ी सड़कों का विस्तार चारो तरफ किया गया था जो एक दुसरे से समकोण पर मिलती थी। जल निकासी के लिए उन्नत व्यवस्था को गई थी सड़को के किनारे ईंट एवं लकड़ियों से नालियों की विकास की गई थी।
हड़प्पा सभ्यता के लगभग 14000 छोटे-बड़े नगरों एवं गावों की खोज अबतक हो चुकी है, लेकिन प्रमुख एवं परिपक्व नगरों में हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, धोलावीरा, राखीगढ़ी, बनवाली, तथा गणवारीवाला था। वर्ष 2014 में भिरड़ाना नगर जो हरियाणा के फतेहाबाद जिले खोजा गया है सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे प्राचीन नगर माना गया। इस सभ्यता का सर्वाधिक स्थल गुजरात में खोजे गए हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता की 8 प्रमुख नगर
1. हड़प्पा
रावी नदी के किनारे बसा हड़प्पा एक प्रमुख नगर था जिसका खोज 1921 में दयाराम साहनी एवं माधोस्वरूप वत्स द्वारा किया गया। यह सिंधु घाटी सभ्यता का प्रथम खोजा गया नगर था जो वर्तमान पकिस्तान के मंटगोमरी जिला मे स्थित है। हड़प्पा से एक वृहत अन्नागार प्राप्त हुआ है जिसका संबंध अन्न भंडार से है। यहां से प्राप्त अन्नागार संभवतः इस सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत थी।
2. मोहनजोदड़ो
मोहनजोदड़ो इस सभ्यता की सबसे बड़ा एवं प्राचीन नगर था जो सिंधु नदी के किनारे स्थिति था। इसे राखाल दास बनर्जी द्वारा 1922 ई. में उत्खनन करवाया गया था यह नगर वर्तमान पकिस्तान के सिंध प्रांत के लरकाना जिले में स्थित था। सिंधी भाषा में मोहनजोदड़ो का अर्थ मृतकों का टीला है। यहां से एक वृहत स्नानगर, अन्नागार, बुने हुए कपड़े, कास्य की बनी नर्तकी की मूर्तियां आदि के साक्ष्य मिले हैं।
3. चन्हुदड़ो
गोपाल मजमूदार द्वारा इस नगर को 1931 में उत्खनन कराया गया था जो सिंधु नदी के तट पर वर्तमान पकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित था। यहां से मनके बनाने के कारखाना ज्ञात हुआ है।
4. कालीबंगन
बी बी लाल एवं बी के थापर द्वारा राजस्थान के हनुमानगढ़ में स्थित कालीबंगा को 1953 में खोजा जो घग्घर नदी के किनारे बसा हड़प्पा सभ्यता का प्रमुख नगर था। यहां से जूते हुए खेतों के साक्ष्य मिलता है जो इस सभ्यता में कृषि कार्य होने को प्रमाणित करता है। कालीबंगन से नक्काशीदार ईंटो का भी साक्ष्य मिले हैं।
5. कोटदीज
पाकिस्त्तान के सिंध प्रांत में खैरपुर स्थान के समीप स्थित कोटदीज नगर का खोज 1953 में हुआ जिसका उत्खनन फजल अहमद द्वारा कराया गया। यह नगर भी सिंधु नदी के किनारे स्थिति था।
6. लोथल
भोगवा नदी पर स्थित यह एक पतन नगर था जहां से टूटी हुई नाव के साक्ष्य मिले हैं। यहां से शतरंज खेल, चावल के भूसी एवं अग्निकुंड के साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं। चावल के प्रथम साक्ष्य भी यहीं से प्राप्त हुए थे।
7. सुतकंगेडोर
हड़प्पा सभ्यता के सबसे पश्चिम स्थित यह नगर पकिस्तान के मकराना तट पर बसा था। 1927 तथा 1962 में ऑरेज स्टाइल एवं जॉर्ज डेल्स द्वारा उत्खनन कराया गया। यहां से घोड़े के अस्थि पंजर के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यह नगर हड़प्पा और बेबीलोन के व्यापारिक केंद्र था।
8. धौलवीरा
यह गुजरात के कच्छ के रण में स्थित सैंधव सभ्यता का सबसे बड़ा नगर था जहां से पानी निकासी के साधन, जल कुण्ड एवं कुआ के साक्ष्य मिले हैं। यह नगर तीन श्रेणियों दुर्ग, मध्य नगर एवं निचला नगर में विभाजित था और साथ ही यह नगर चारो ओर से प्राचीर पत्थरों से किला बंद था। इसके वृहत द्वार पर सैंधव लिपि के दस अक्षरों लिखे हुए मिले हैं। धौलावीरा को भारत के 40वा विश्व धरोहर में शमिल किया गया है।
सिंधु सभ्यता के प्रमुख नगरों की सुची
क्र सं | प्रमुख नगर | नदी | उत्खनन वर्ष | उत्खननकर्ता | वर्तमान स्थिति |
1. | हड़प्पा | रावी | 1921 | दयाराम साहनी एवंमाधवस्वरूप वत्स | पाकिस्तान के मंतगोमरी जिला |
2. | मोहनजोदड़ो | सिंधु | 1922 | रखलदास बनर्जी | पाकिस्तान में सिंध प्रांत का लरकाना जिला |
3. | चुन्होदडो | सिंधु | 1931 | गोपाल मजमुदार | पाकिस्तान के सिंध प्रांत |
4. | कालीबांगा | घग्घर | 1953 | बी बी लाल एवंबी के थापर | राजस्थान के हनुमानगढ़ जिला |
5. | कोटदीज | सिंधु | 1953 | फजल अहमद | पाकिस्तान सिंध प्रांत के खैरपुर स्थान |
6. | रंगपुर | मांदर | 1954 | रंगनाथ राव | गुजरात के काठियावाड़ जिला |
7. | रोपड़ | सतलुज | 1953 -56 | यज्ञदत्त शर्मा | पंजाब का रोपड़ जिला |
8. | लोथल | भोगवा | 1955, 1962 | रंगनाथ राव | गुजरात का अमदाबाद जिला |
9. | आलमगीरपुर | हिंडन | 1958 | यज्ञदत्त शर्मा | उत्तर प्रदेश का मेरठ जिला |
10. | सुतकांगेडोर | दाश्क | 1927,1962 | ऑरेज स्टीन,जार्ज डेल्स | पाकिस्तान के मकराना तट |
11. | बनमाली | रंगोई | 1974 | रविंद्र नाथ बिष्ट | हरियाणा के हिसार जिला |
12. | धौलाबीरा | लूनी | 1991 | रवींद्रनाथ विष्ट | गुजरात के कच्छ जिला |
13. | राखीगढ़ी | सरस्वती, दृषद्धति | 1997– 99 | भारतीय पुरातत्व विभाग | हरियाणा के हिसार जिला |
14 | भिरड़ाना | – | 2014 | भारतीय पुरातत्व विभाग | हरियाणा के फतेहाबाद जिला |
सिंधु घाटी सभ्यता की सामाजिक जीवन
हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न नगरों के खुदाई के उपरांत अनेक स्त्री मृणमूर्तियां, मातृ देवी की पूजा तथा मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक नर्तकी की मूर्ति से यह प्रतीत होता है कि यहां का समाज मातृसत्तात्मक था। कालीबंगा से प्राप्त एक चूड़ी तथा कई मूर्तियों पर बने माला, कंगन आदि से यह प्रतीत होता है कि स्त्रियां सिंगार प्रधान थी एवं इस सभ्यता में पर्दा प्रथा तथा वेश्यावृत्ति का प्रचलन था।
इस सभ्यता के लोग सूती तथा ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करना जानते थे। मनोरंजन के लिए सैंधववासी मछली पकड़ना, शिकार करना, पशु-पक्षियों को लड़ाना, पाशा खेलना आदि संसाधनों का प्रयोग करते थें जबकि कला के रूप में यहां चित्रकारी विकसित थी।
सिंधु घाटी सभ्यता की धार्मिक जीवन
हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न नगरों से प्राप्त कई महत्वपूर्ण साक्ष्यों के आधार पर सैंधववासीयो का धार्मिक जीवन का पता चलता है। सैंधव सभ्यता में प्राकृति पूजा की साक्ष्य मिले हैं। सैंधववासी धरती को उर्वरता की देवी मान कर पूजा करते थे साथ ही साथ वृक्ष पूजा का भी साक्ष्य यहां से प्राप्त हुए है। स्वास्तिक चिन्ह संभवतः इसी सभ्यता की देन है जिससे सूर्योपासना का अनुमान लगाया जाता है।
सिंधु सभ्यता में मातृ देवी की उपासना सर्वाधिक प्रचलित थी लेकिन देवता के रुप में शिव (पशुपति) पूजा का भी साक्ष्य मिले हैं। पशुओं में कुबड़ वाला सांड पूजनीय था। लोथल से प्राप्त अग्निकुंड के साक्ष्य से यह प्रतीत होता है कि यहां के लोग आहुति देने की प्रचलन था लेकिन किसी भी नगर से मंदिर होने का साक्ष्य नहीं मिले हैं। मोहनजोदड़ो से एक वृहत स्नानागार प्राप्त हुआ है जिसका प्रयोग संभवत धार्मिक अनुष्ठानों में सामूहिक रूप से होता था।
धार्मिक परंपरा के अनुसार शवों के अंतिम संस्कार के भी साक्ष्य यहां से प्राप्त हुए हैं। परंपरा के अनुसार शवों को दफनाने एवं जलाने की प्रथा थी। हड़प्पा नगर में शव को दफनाने तथा मोहनजोदड़ो में शव को जलाने की प्रथा का साक्ष्य उपलब्ध हुए हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता की आर्थिक जीवन
कृषि
सिंधु घाटी सभ्यता अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि और व्यापार था। कालीबंगा से जूते हुए खेत के साक्ष्य मिले हैं इस सभ्यता की मुख्य फसल गेहूं और जौ थे। गुजरात के रंगपुर तथा उत्तर प्रदेश के कोलडीहवा से चावल के दाने का साक्ष्य मिले हैं जिससे धान की कृषि होने का प्रमाण मिलता है।
उद्योग
सिंधु सभ्यता में उद्योग का भी प्रमाण मिलता है चन्हुदडो से मनके बनाने का कारखाना ज्ञात हुआ है। धातुओं में सोना, चांदी, टीना, सीसा तथा तांबा ज्ञात था। टीना एवं तांबा मिलाकर कांसा बनाया जाता था इसलिए इसे कांस्य युगीन सभ्यता भी कहते हैं।
व्यापार
हड़प्पा सभ्यता में व्यापार का भी साक्ष्य उपलब्ध है इस सभ्यता की प्रचलित मुहरे (एक श्रृंगी पशु का चित्र वाला) तथा मेसोपोटामिया की मुहरें एक दूसरे के स्थान से प्राप्त हुए हैं, जिससे पता चलता है कि इनके बीच व्यापारिक संबंध थें। सैंधाव वासी तांबा, चांदी, गोमेद, लाजवर्द मणि आदि का व्यापार करते थे।
लोथल से प्राप्त टूटी हुई नाव का साक्ष्य से पता चलता है कि यह एक बंदरगाह था सुरकोटडा एक अन्य बंदरगाह था। यातायात के लिए सिंधु वासी दो पहिए चार पहिया बैलगाड़ी तथा भैंसागाड़ी का प्रयोग करते थे। मृदभांड जो एक प्रचलित बर्तन था इस पर नौका का चित्र बने हुए थे इससे यह प्रतीत होता है कि यहां के लोग नौकायान का प्रयोग करते थे।
सिंधु घाटी सभ्यता की राजनैतिक जीवन
सिंधु घाटी सभ्यता में ठोस एकरूपता एवं व्यापक योजना वाली बस्तियों को देखने से यहां सुदृढ़ राजतंत्र होने का संकेत मिलता है, लेकिन किसी भी जगह कोई नरेश होने का साक्ष्य प्राप्त नहीं होता। इससे संभवत यह कहा जा सकता है कि सिंधु सभ्यता का शासन व्यवस्था वणिक (व्यापारिक) वर्गों के हाथों में था।
सिंधु घाटी सभ्यता की पत्तन के करण
सिंधु घाटी सभ्यता के पत्तन के कारणों में विद्वानों में मतभेद है पतन से सम्बन्धित कोई भी मत सर्वमान्य नहीं है। लेकिन कई शोधकर्ताओं के मत की कुछ महत्त्वपूर्ण सम्मानता से यह ज्ञात हुआ है कि पतन का मुख्य कारण प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़ एवं जलवायु परिवर्तन थीं।
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सिंधु सभ्यता से सम्बन्धित FAQ
सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल कौन था?
धौलावीरा सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा खोजा गया स्थल है जो गुजरात के कच्छ क्षेत्र में स्थित है। रखीगढ़ी दुसरा बड़ा स्थल था।
सिंधु सभ्यता के किस नगर से वृहत स्नानागार प्राप्त हुआ है?
मोहनजोदड़ो से एक वृहत स्नानागार होने का साक्ष्य प्राप्त है जो आयताकार रूप में उतर से दक्षिण 55 मी. एवं पूरब से पश्चिम 33 मीटर था। इसके मध्य में स्थित स्नानकुण्ड की लम्बाई × चौड़ाई × गहराई क्रमशः 11.8 मीटर, 7.04 मीटर तथा 2.43 मीटर थी। सम्भवतः इसका उपयोग सार्वजनिक अनुष्ठान में होता था।
सिंधु सभ्यता में किस पशु को पूजा जाता था?
प्राप्त साक्ष्य के अनुसार कुबड़ वाला सांढ सिंधु सभ्यता में पूजनीय पशु था।
सिंधु सभ्यता की जुड़वा राजधानी किसे कहा गया है?
पिग्गट ने हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो को जुड़वा राजधानी कहा है।
सिंधु सभ्यता के लोग किस देवता कौन करते थें?
प्राप्त साक्ष्य के अधार पर पशुपति (शिव) सैन्धव वासियों के पूजनीय देवता थें।